शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

टेलिफोन और मोबाइल की धोखाधड़ी

टेलीफोन और मोबाइल जरुरी बात करने और तत्काल सूचना के आदान-प्रदान के लिए होते हैं न कि लो कर लो जी भरकर बात या फालतू की बकवास के लिए. दिन-प्रतिदिन इनकी दरों में परिवर्तन भी उचित नहीं है. टेलीफोन और मोबाईल की दरें तमाशा बन गई हैं. इससे उपभोक्ता का शोषण किया जा रहा है. दरें स्पष्ट और कम से कम तीन माह में अपरिवर्तनीय होनी चाहिए.
1. एक मोबाइल कंपनी के विज्ञापन का नमूना यहाँ पेश है:
(ए) रूपये 999 में कहें जीवन भर हेलो.

(बी) * तुंरत कनेक्शन * कोई मासिक किराया नहीं

(सी) वर्त्तमान वैधता जुलाई 2021 तक या नवीनीकृत लाईसेन्स अवधि तक.
(डी) आजीवन वैधता के लिए हर महिने कम से कम रूपये 125.00 का रिचार्ज.
(इ) इस कंपनी के हिसाब से शायद जीवन 2021 तक ही है और प्रति वर्ष 500 रूपये जो देने होगें यानि कि 13 साल तीन महिने में 999+125+6500= 7624.00 देने होगें. ये 7624 कहीं से मुफ्त में आ जायेगें.

यह विज्ञापन अपने आप में सीधा धोखाधडी है. ऐसे धोखे के विज्ञापन शायद सरकार की सहमती से ही दिए जा रहे हैं. कौन बचायेगा उपभोक्ता को इस धोखधडी से\ इस प्रकार के विज्ञापनों के विरुद्ध सीधे कोर्ट को संज्ञान लेकर कार्यवाही करनी चाहिए. कोई भी विज्ञापन दो टूक होना चाहिए ताकि उपभोक्ता किसी धोखे में न रहे. उपभोक्ता संरक्षण का दायित्व सरकार और कोर्ट का है.

आम आदमी को चाहिए की वह भी धोखाधड़ी वालों से सावधान रहे और टेलिफोन और मोबाइल का उपयोग ज़रूरत भर के लिए करे, इसे तफ़री का साधन न तो समझे और न ही तफ़री का साधन बनाये.

शेयर्स और मुनाफ़ा


जगदीश जैन

`चिड़िया, शेयर्स में दलाल, कंपनीज़ और इन्वेस्टर्स का खेल है. दलाल तो अपने बाप को भी न छोड़ेगा, कंपनीज़ घाटे का सौदा क्यों करेंगी? इन्वेस्टर्स किताब पढ़-पढ़कर मुनाफ़ा कमा लेंगे. अब तुम यह तो बताओ कि फिर धन आ कहाँ से रहा है?'
इस पर चिड़िया खूब ही हँसी और बोली,`चिड़े, तुमने तो आज कमाल का सवाल पूछा है. चिड़े, व्हेल छोटी फिश को खा-खा कर ही बड़ी होती है. शेयर्स के धंधे मे दलाल और कंपनीज़ व्हेल हैं और इन्वेस्टर्स फिश. अन्त:तोग्त्वा इन्वेस्टर्स को दलाल और कंपनीज़ के उदर में समा जाना है, तभी तो भारत में करोड़पति बढ़ेगें.'